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दूध के पाश्चुरीकरण की विधिया

दूध के पाश्चुरीकरण की विधि, दूध को अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए दूध के पाश्चुरीकरण की विधि को अपनाया जाता है। पाश्चुरीकरण की विधि में किसी भोज्य पदार्थ को अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए उसे एक निश्चित तापमान पर गर्म करके तुरंत ठंडा किया जाता है, जिससे उसमे उपस्थित बैक्टीरिया निष्क्रिय हो जाते है।

दूध के पाश्चुरीकरण की विधिया

दूध के पाश्चुरीकरण की विधिया 

1. इसके अंतर्गत दो विधियों का प्रयोग मुख्य रूप से से किया जाता है। 
(i) LTH (Low Temprature Holding Method), इसमें दूध को 62.8 डिग्री सेल्सियस पर 30 मिनट तक गर्म किया जाता है। 
(ii) HTST (High Temprature Short Time Method), इसमें दूध को 71.7 डिग्री सेल्सियस पर 15 सेकण्ड तक गर्म किया जाता है। 

2. शीत संग्रहागार (कोल्ड स्टोर) में ----  -10 डिग्री सेल्सियस से -18 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है। 

दूध के पाश्चुरीकरण की विधि की खोज किसने की  

दूध के पाश्चुरीकरण की विधि की खोज फ्रांसीसी केमिस्ट व माइक्रोबायोलोजिस्ट लुई पाश्चर ने की थी। इनके नाम पर ही इस विधि का नाम पाश्चुरीकरण पड़ा था। पाश्चुरीकरण की विधि लुई पाश्चर के द्वारा शराब के गुणों के बेहतर बनाने के लिए 1864 ई. में खोजी गयी थी। दूध के पाश्चुरीकरण का वाणिज्यिक प्रयोग 1800 के दशक के अंत में यूरोप और 1900 के दशक की शुरुआत में संयुक्त राज्य अमेरिका में किया जाने लगा था। 

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