भारत का स्वतन्त्रता दिवस
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दिल्ली का लाल किला |
15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने, पुरानी दिल्ली में स्थित लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को फैराया था। उसी समय से प्रतिवर्ष भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर (किले की बाहरी दिवार) से देश को सम्बोधित करते है। इस दिन को भारत में, राष्ट्रीय ध्वज को फैराने के समारोह, विभिन्न प्रकार की परेड और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है। इस दिन को भारतवर्ष के लोग राष्ट्रीय ध्वज को अपने वस्त्रो और वाहनों पर अंकित करके, तिरंगे के सम्मुख राष्ट्रगान गाकर एवं देशभक्ति की फिल्मे देखकर बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाते है। उस दिन प्रत्येक भारतीय देश भक्ति के रंग में रंगकर अपने आप पर भारतीय होने पर गर्व महसूस करता है।
स्वतंत्रता से पहले कब मनाया गया भारत का स्वतंत्रता दिवस :
कांग्रेस द्वारा वर्ष 1929 ई. के लाहौर अधिवेशन में 'पूर्ण स्वराज' का अपना लक्ष्य घोषित किया गया था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता पंडित जवाहर लाल नेहरू के द्वारा की गई थी। जवाहरलाल नेहरू ने 31 दिसम्बर, 1929 ई. को रात के 12 बजे रावी नदी के तट पर नवगृहीत तिरंगे झण्डे को फैराया था। इसी अधिवेशन में 26 जनवरी 1930 ई. को 'प्रथम स्वाधीनता दिवस' के रूप में मनाने का निश्च्य किया गया था। इसी के साथ प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाये जाने की परम्परा शुरू हुई । कांग्रेस ने वर्ष 1930 से 1950 ई. तक 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। इसमें लोग एक-दूसरे से मिलकर स्वतंत्रता की शपथ लेते थे। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा (Towards The Freedom) में इसका वर्णन किया है कि इस प्रकार की बैठके, किसी भी भाषण या उपदेश के बिना शांतिपूर्ण एवं गंभीर होती थी। वर्ष 1947 में आजादी के बाद भारत का सविंधान 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया और तभी से 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
भारत की स्वतंत्रता और कब हुआ भारत का बँटवारा :
3 जून , 1947 ई. को भारत विभाजन की माउंटबेटन योजना को प्रकाशित किया गया। इस योजना को 3 जून , 1947 ई में हुई कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में स्वीकार कर लिया गया था। कांग्रेस महासमिति की बैठक में गोविन्द बल्लभ पंत ने देश के विभाजन की माउंटबेटन योजना को स्वीकार करने का प्रस्ताव 14 जून, 1947 को पेश किया। इस प्रस्ताव का समर्थन अबुल कलाम आज़ाद ने किया, जो बंटवारे का विरोध करते आ रहे थे। आज़ाद ने कहा "कांग्रेस कार्य समिति का फैसला सही फैसला नहीं है, लेकिन कांग्रेस के सामने कोई और रास्ता भी नहीं है।"
गांधीजी, नेहरू और पटेल के समर्थन के बावजूद कांग्रेस कार्य समिति का देश विभाजन का प्रस्ताव अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में पास न हो सका। 161 सदस्यों ने उनके खिलाफ वोट दिया था। प्रस्ताव का विरोध करने में सिंध कांग्रेस के नेता चौथराम मिडवानी, पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. किचलू, पुरुषोत्तम दास टंडन और मौलाना हफीजुर्रहमान आदि थे।
मुश्लिम लीग की कौंसिल की बैठक माउंटबेटन योजना पर विचार करने के लिए 10 जून 1947 को नई दिल्ली में हुई थी। लीग ने भारी बहुमत से इस योजना को स्वीकार किया। लीग की बैठक में उपस्थित 400 सदस्यों में से केवल 10 सदस्यों ने माउंटबेटन योजना का विरोध किया था।
नोट : स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कांग्रेस के अध्यक्ष जे. बी. कृपलानी एवं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेन्ट एटली (लेबर पार्टी) थे।
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