मनुष्य के रक्त समूह Blood Group
मनुष्य के रक्त समूह

1. मनुष्य के रक्त समूह की खोज सर्वप्रथम किसने की थी ?
उत्तर- कार्ल लैंडस्टीनर ने
वर्ष 1900 ई. में कार्ल लैंडस्टीनर ने रक्त समूह की खोज की थी। इसके लिए इनको वर्ष 1930 ई. में नोबेल पुरुस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

2. मनुष्य के रक्त की भिन्नता का मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर- एन्टीजन (Antigen)
यह लाल रक्त कणो में पायी जाने वाली ग्लाइको प्रोटीन है, इसे एन्टीजन भी कहते है।

3. एन्टीजन कितने प्रकार के होते है ?
उत्तर- दो प्रकार के
1. एण्टीजन A
2. एण्टीजन B

4. एण्टीजन या ग्लाइको प्रोटीन के आधार पर मनुष्य के रक्त को कितने समूहों में बांटा गया है ?
उत्तर- चार रक्त समूहों में
  • जिसमे एण्टीजन A होता है - रुधिर वर्ग A 
  • जिसमे एण्टीजन B होता है - रुधिर वर्ग B 
  • जिसमे एण्टीजन A और B दोनों होते है - रुधिर वर्ग AB 
  • जिनमे दोनों में से कोई एन्टीजन नहीं होता है - रुधिर वर्ग O   


5. एण्टीबॉडी किसे कहते है ?
उत्तर- किसी एन्टीजन की अनुपस्थिति में एक विपरीत प्रकार की प्रोटीन रुधिर में पायी जाती है। इसको एण्टीबॉडी कहते है। यह दो प्रकार की होती है। 1. एण्टीबॉडी a और 2. एण्टीबॉडी b 

रक्त का आधान (Blood Transfusion)

एण्टीजन A एवं एण्टीबॉडी a, एण्टीजन B एवं एण्टीबॉडी b एक साथ नहीं रह सकते है। ऐसा होने पर ये आपस में मिलकर अधिक चिपचिपे हो जाते है , जिससे रक्त नष्ट हो जाता है।  इसे रक्त का अभिशलेषण (agglutination) कहते है। अतः रक्त के आदान-प्रदान में एण्टीजन और एण्टीबॉडी का ऐसा ताल-मेल करना चाहिए जिसे रक्त का  
अभिशलेषण (agglutination) न हो सके। 

6. सर्वदाता रक्त समूह किसे कहते है ? 
उत्तर- ब्लड ग्रुप O को ,
क्योकि इसमें कोई एण्टीजन नहीं होता है। 

7. सर्वग्राही रक्त समूह किसे कहते है ?
उत्तर- ब्लड ग्रुप AB 
क्योकि इसमें कोई एण्टीबॉडी नहीं होता है। 

Rh-तत्व (Rh-factor) :

वर्ष 1940 ई. में लैंडस्टीनर और वीनर नामक वैज्ञानिको ने रक्त में एक और अन्य प्रकार के एण्टीजन का पता लगाया था। इस तत्व का पता उन्होंने रीसस बन्दर में लगाया था। इसलिए इसे Rh-फैक्टर कहते है , जिन मनुष्यो के खून में यह तत्व पाया जाता है , उनके रक्त समूह को Rh-सहित (Rh-positive) कहते है और जिनमे नहीं पाया जाता है, उनका रक्त Rh-रहित (Rh-negative) कहलाता है।  
रक्त का आदान-प्रदान करते समय Rh-factor की भी जांच की जाती है। Rh+ को Rh+ का रक्त और Rh- को Rh- का ही रक्त दिया जाता है। 
यदि Rh- रक्त वाले व्यक्ति को Rh+ रक्त दे दिया जाये तो प्रारम्भ में कम मात्रा होने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। किन्तु जब दूसरी बार इसी प्रकार रक्त का आधान किया जाये तो अभिशलेषण (agglutination) के कारण Rh- वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। 

एरिथ्रोब्लास्टोसिस फेटालिस (Erythroblastosis Fetalis) :

यदि पिता का रक्त Rh+ हो तथा माता का रक्त Rh - हो तो जन्म लेने वाले शिशु की जन्म से पहले गर्भावस्था अथवा जन्म के तुरंत बाद मृत्यु हो जाती है। (ऐसा प्रथम संतान के बाद की संतान होने पर होता है)