स्वामी दयानन्द सरस्वती और आर्य समाज : हिन्दू धर्म और समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने में आर्य समाज ने विशेष योगदान दिया है। महर्षि दयानन्द सरस्वती के द्वारा आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल 1875 ई. में गिरगाँव, मुंबई में की गयी थी। उन्नीसवीं शताब्दी का समय, समाज में घोर अन्याय और असमानता का युग था। भारतवासी अनेक प्रकार की रूढ़ियों और गलत नीतियों के कारण अपने धर्म और सभ्यता के पतन की और जा रहे थे। उस समय स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की और लोगो के जीवन का उद्धार किया। उन्होंने हिन्दुओ को स्वतंत्रता, प्रेम से रहने, सच्ची ईश्वर भक्ति और हिन्दू संस्कृति के प्रति सम्मान का भाव रखने की प्रेरणा दी। उन्होंने लोगो के जीवन का मार्गदर्शन कर उन्हें सच्ची ईश्वर भक्ति की और प्रेरित किया।
स्वामी दयानन्द सरस्वती और आर्य समाज |
स्वामी दयानन्द सरस्वती का जीवन परिचय
उनका जन्म 12 फरवरी, वर्ष 1824 ई. को टंकारा, गुजरात के एक समृद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम मूलशंकर तिवारी था। उनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी और उनकी माता का नाम यशोदाबाई था। उनके पिता ब्राह्मण समाज के एक समृद्ध, अमीर और प्रभावशाली व्यक्ति थे। उनके पिता पेशे से एक कर-कलेक्टर थे। वह युवावस्था में ही घर-द्वार छोड़कर साधु-सन्यासियो के साथ रहने लगे थे। उन्ही के मध्य रहकर वह संस्कृत भाषा, वेदो एवं शास्त्रों के विद्वान् बने तथा अन्य सभी धार्मिक पुस्तकों का गहन अध्ययन भी करने लगे। स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के गुरु महर्षि पूर्णानंद ने उनको दयानन्द सरस्वती का नाम दिया तथा वेदो का ज्ञान महर्षि विरजानन्द दण्डीश ने उन्हें प्रदान किया ।
महर्षि दयानन्द ने हिन्दुओ को उपदेश देकर उन्हें अत्यंत सरलता से प्राचीन धर्म की विशेषताओं, भारतीय संस्कृति की अच्छाइयों और शुद्ध जीवन के लाभों से परिचित कराया तथा उनकी सुप्त चेतना को जाग्रत किया। उन्होंने 'सत्यार्थ प्रकाश' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की भी रचना की। सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक हिंदी भाषा में केशवचन्द्र सेन के कहने पर लिखी गयी थी तथा इसका प्रथम हिंदी संस्करण वर्ष 1875 ई. में प्रकाशित किया गया। वैदिक धर्म के पुनरुथान हेतु स्वामी जी ने 10 अप्रैल, वर्ष 1875 ई. में मुंबई (पुराना नाम - बम्बई) में आर्य समाज की स्थापना की और वर्ष 1877 ई. में आर्य समाज का मुख्यालय 'लाहौर' में स्थापित कर दिया गया था। आगे चलकर भारत के प्रत्येक कोने में इस संस्था की शाखाएं स्थापित की गयी। उन्होंने समाज को 'वेदो की और लोटो' का नारा दिया। भारतीय संस्कृति के पुनरुथान के महारथी स्वामी दयानन्द सरस्वती का देहावसान (मृत्यु) 30 अक्टूबर, वर्ष 1883 ई. को अजमेर,राजस्थान में हो गया।
स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा लिखी गयी पुस्तके
1. पाखण्ड खण्डिनी
2. अद्वैतवादमत का खंडन
3. वल्लभाचार्य के मत का खंडन
4. सत्यार्थ प्रकाश
2. अद्वैतवादमत का खंडन
3. वल्लभाचार्य के मत का खंडन
4. सत्यार्थ प्रकाश
विभिन्न लेखकों और व्यक्तियों के स्वामी दयानन्द सरस्वती के विषय में विचार
अरविन्द घोष के अनुसार - वह परमात्मा की इस विचित्र धरती का अद्वितीय योद्धा तथा मनुष्य और मानवीय संस्थाओ का सत्कार करने वाला एक अदभुत चित्रकार था।
रोम्यां रोला ने उन्हें उच्चतम व्यक्तित्व का महान पुरुष बताते हुए कहा - दयानन्द, इलियड व गीता के प्रमुख नायको के समान थे, उनमे हरक्यूलिस जैसी अदम्य शक्ति थी।
मैक्समूलर के अनुसार - इन्होने उन्हें हिन्दू धर्म का महान सुधारक और उद्धार करने वाला बताया है।
एन्सन के अनुसार - वह भारत के राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक नवजागरण के अग्रणी नेता थे।
सरदार वल्लभभाई पटेल के अनुसार - भारत की स्वतंत्रता की बुनियाद वास्तव में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने ही डाली थी।
ऐनी बेसेंट के अनुसार - वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 'भारत भारतीयों के लिए है' की घोषणा की थी
डॉ. भगवानदास के अनुसार - वह हिन्दू पुनर्जागरण के मुख्य निर्माता थे।
रोम्यां रोला ने उन्हें उच्चतम व्यक्तित्व का महान पुरुष बताते हुए कहा - दयानन्द, इलियड व गीता के प्रमुख नायको के समान थे, उनमे हरक्यूलिस जैसी अदम्य शक्ति थी।
मैक्समूलर के अनुसार - इन्होने उन्हें हिन्दू धर्म का महान सुधारक और उद्धार करने वाला बताया है।
एन्सन के अनुसार - वह भारत के राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक नवजागरण के अग्रणी नेता थे।
सरदार वल्लभभाई पटेल के अनुसार - भारत की स्वतंत्रता की बुनियाद वास्तव में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने ही डाली थी।
ऐनी बेसेंट के अनुसार - वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 'भारत भारतीयों के लिए है' की घोषणा की थी
डॉ. भगवानदास के अनुसार - वह हिन्दू पुनर्जागरण के मुख्य निर्माता थे।
आर्य समाज के सिद्धांत
- समस्त सत्य, विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते है , उन सबका आदि मूल परमेश्वर है।
- ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, दयालु, निर्विकार, न्यायकारी, अजन्मा, अनंत, अनादि, अनुपम, सर्वेश्वर, सर्वाधार, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामि, अजर, अमर, नित्य, अभय, संसार के पालनहार और पवित्र है।
- वेद सब सत्य विद्याओ की पुस्तक है; अतः वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना प्रत्येक आर्य का कर्त्तव्य और परम धर्म है।
- सदैव सत्य को ग्रहण करने और असत्य को त्यागने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
- सभी काम धर्मानुसार अर्थात सत्य और असत्य पर विचार करके ही करने चाहिए।
- सभी से प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य व्यवहार करना चाहिए।
- संसार का उद्धार करना आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात समाज के लोगो की शारीरिक, आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति करना।
- विद्या की वृद्धि का और अविद्या के विनाश का सदैव ही प्रयत्न करते रहना चाहिए।
- प्रत्येक को अपनी उन्नति में ही संतुष्ट नहीं रहना चाहिए बल्कि सभी की उन्नति में ही अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
- सभी मनुष्यो को सामाजिक सर्वहितकारी नियम का पालन करना चाहिए और स्वयं के हितकारी नियमो से स्वतंत्र रहना चाहिए।
आर्य समाज का मुख्यालय 'नई दिल्ली' में है।
आर्य समाज का सिद्धांत (Motto) है - "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्" (Make The World Noble) इसका अर्थ है - दुनिया को महान बनाओ
Click Here- SSC CGL GK MCQ Questions In Hindi | Mcq GK In Hindi With Answer
0 Comments